(जन सहायक) बच्चों में कुपोषण उनके शारीरिक और मानसिक विकास को प्रभावित करता है। विकासशील देशों में कुपोषण के कारण लगभग 14 करोड़ 70 लाख छोटे बच्चों का उचित शारीरिक और मानसिक विकास नहीं होता। विश्वभर में बच्चों की 45 प्रतिशत मौतों का कारण पर्याप्त पोषण का न मिलना है। बीमारियों और कुपोषण के बीच गहरा संबंध है। बीमारियों का सबसे बड़ा कारण कुपोषण है। महिलाओं के स्वास्थ्य और कल्याण में सुधार से ही कुपोषण की रोकथाम की जा सकती है। गर्भावस्था से लेकर शिशु के दूसरे जन्मदिन के बीच के 1000 दिनों के दौरान महिलाओं को पोषण प्रदान करना विशेष महत्वपूर्ण है क्योंकि यह भविष्य की आधारशिला रखता है। महिला को गर्भावस्था के दौरान और बच्चे को जन्म के शुरूआती एक साल में पूरा पोषण देने से मस्तिष्क का और शरीर का उचित विकास होता हैं एवं रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है। किसी व्यक्ति के जीवनपर्यंत स्वास्थ्य का आधार इन्हीं 1000 दिनों से निर्धारित होता है। भारत की अधिकत्तर महिलाओं की लंबाई और वजन कम होता है और उनमें खून की कमी होती है। इसी कारण वे कमजोर बच्चों को जन्म देती हैं और स्वयं भी कपोषण का शिकार होती हैं। हमारे देश में हर वर्ष ढाई करोड़ से भी अधिक बच्चे जन्म लेते हैं। अत- गर्भावस्था से पहले और उसके दौरान मातृत्व पोषण पर तत्काल ध्यान दिया जाना चाहिए। हमारे देश में कुपोषण की समस्या से निपटने के लिए कई तरह के प्रयास किए जा रहे हैं। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय आईसीडीएस कार्यक्रम के तहत आंगनबाड़ी केंद्रों के माध्यम से बच्चों और गर्भवती माताओं के पोषण और स्वास्थ्य में सुधार की दिशा में कार्य करता है। इसके अंतर्गत अनेक सुविधाएँ जैसे अनुपूरक पोषण, टीकाकरण, स्वास्थ्य जाँच, रेफरल सेवाएँ आदि उपलब्ध कराई जाती हैं। इसी प्रकार खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्रालय सार्वजनिक वितरण प्रणाली द्वारा लागों को सस्ता भोजन उपलब्ध करता है। इसी प्रकार ग्रामीण विकास मंत्रालय ने घरेलू आय बढ़ाने के लिए मनरेगा को लागू किया है जिससे उन्हें भोजन पाना आसान हो। कुपोषण को कम करने के प्रयत्न और आर्थिक वृद्धि के बावजूद हमारे देश में पाँच किसी वर्ष से कम आयु के 38.7 प्रतिशत बच्चों का विकास अवरुद्ध है, 19.8 प्रतिशत बच्चे अत्यंत कमजोर हैं और 42.5 प्रतिशत बच्चों शिक्षा का वजन बहुत कम है। आज विकासशील देशों में कुपोषण के कारण 10 लाख बच्चों की मृत्यु हो जाती है। 2016 की ग्लोबल हंगर इंडेक्स रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 15.2 प्रतिशत वयस्क और 38.7 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। भारत भूख से पीड़ित के शिकार हैं। भारत भूख से पीड़ित 118 देशों में 97वें स्थान पर है। सबसे भयंकर __परिणाम इसके द्वारा जनित आर्थिक नुकसान होता है। कुपोषण के कारण मानव उत्पादकता 10-15 प्रतिशत तक कम हो जाती है जो सकल घरेलू उत्पाद को 5-10 प्रतिशत तक कम कर सकता है। कुपोषण के कारण बड़ी तादाद में बच्चे स्कूल छोड़ देते हैं। कुपोषित _बच्चे घटी हुई सीखने की क्षमता के कारण । खुद को स्कूल में रोक नहीं पाते। स्कूल से बाहर वे सामाजिक उपेक्षा तथा घटी हई कमाऊ क्षमता तथा जीवन पर्यंत शोषण के शिकार हो जाते हैं। इस कारण बड़ी संख्या में बच्चे बाल श्रमिक बनने के लिए मजबूर हो । जाते हैं। बड़े होने पर वे अकुशल मजदूरों की लम्बी कतार में जुड़ जाते हैं जो राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था पर भारी बोझ बनता है। सामान्य रूप में कुपोषण को चिकित्सीय मामला माना जाता है और हम में से अधिकतर सोचते हैं कि यह चिकित्सा का विषय है। वास्तव में _कुपोषण बहुत सारे सामाजिक-राजनैतिक कारणों का परिणाम है। जब भख और गरीबी राजनैतिक एजेंडा की प्राथमिकता नहीं होती तो बड़ी तादाद में कुपोषण सतह पर उभरता है। भारत में कुपोषण उसके पड़ोसी अधिक गरीब और कम विकसित पड़ोसियों जैसे । __ बांग्लादेश और नेपाल से भी अधिक है। बांग्लादेश में शिशु मृत्युदर 48 प्रति हजार है
कपोषण महामारी है, इससे प्राथमिकता के आधार पर निपटना होगा