सच्चे ज्ञान का आभास प्रकृति में ही मिल सकता है

    संसार में धर्म के नाम पर जो इतने भीषण युद्ध हुए हैं, वे सब अंधविश्वास के कारणशुद्ध बुद्धि की कसौटी पर तो सारे प्रचलित मत समान रूप से असंगत, मिथ्या और कपोलकल्पित हैं। युक्ति और विश्वास के सामने कोई ठहरने के योग्य नहीं। इस अंधविश्वास ने मनुष्य जाति का कितना अपकार किया है। धर्मांधता के कारण कितना रक्तपात हुआ है, कितने प्राणियों का सुख धूल में मिल गया है। कितने आदमियों को घर-बार छोड़ दूर देशों में भागना पड़ा है। राज्यशासन में जहां-जहां धर्मांधता का प्रवेश रहा है, वहां-वहां घोर अनर्थ हुए हैं। बहुत से देशों में धर्मशिक्षा स्कूलों में अनिवार्य रखी गई है, जिसका फल यह होता है कि बालकों के कोमल हृदयों पर ऐसे कुसंस्कार जम जाते हैं, जो कभी नहीं जाते। उनका चित्त अंधविश्वास का अनुयायी हो जाता है, फिर उन्हें असंगत बातें अभ्यास के कारण नहीं खटकतीं। दुख की बात है कि जिन देशों में धर्मशिक्षा की अनिवार्य व्यवस्था नहीं है, वहां भी अब कुछ लोग उसकी आवश्यकता बतला रहे हैं। पर आधुनिक सभ्य राज्यों के लिए यह परम आवश्यक है कि सर्वसाधारण की शिक्षा के लिए ऐसे विद्यालय खुलें, जो सांप्रदायिक बंधनों से मुक्त हों। सच्चे ज्ञान का आभास प्रकृति ही में मिल सकता है; उसमें ही उसे ढूंढ़ना चाहिए। उसके लिए अप्राकृतिक शक्ति की कल्पना करना प्रमाद और बुद्धि का आलस्य है। सत्य का ज्ञान जो कुछ मनुष्य को हुआ है और हो सकता है, वह प्रकृति की समीक्षा द्वारा प्राप्त अनुभवों तथा इन अनुभवों की संगत योजना द्वारा स्थिर सिद्धांतों द्वारा ही। प्रत्येक बुद्धिसंपन्न मनुष्य सत्य का आभास प्रकृति निरीक्षण द्वारा प्राप्त कर सकता है और अपने को अज्ञान और अंधविश्वास से मुक्त कर सकता है। -हिंदी के सुप्रसिद्ध आलोचक